तालिबान और अमेरिका के बीच हुआ ऐतिहासिक समझौता


पिछले चार दशकों से युद्ध जैसे हालात में जूझ रहे अफगानिस्तान से एक और महाशक्ति के बाहर निकलने की जमीन तैयार हो गई है। कतर की राजधानी दोहा में अमेरिका और तालिबान के बीच ऐतिहासिक समझौता हो गया है जिसकी वजह से वहां से अगले कुछ ही महीनों में अमेरिकी सैनिकों की वापसी हो सकेगी लेकिन साथ ही वहां तालिबान के सत्ता में आने का रास्ता भी खुल जाएगा। तालिबान व पाकिस्तान के पुराने संबंधों को देखते हुए भारत के सुरक्षा व कूटनीति पर भी इस समझौते के व्यापक असर की संभावना जताई जा रही है। वैसे बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि तालिबान व अफगानिस्तान की मौजूदा अशरफ घनी सरकार व अन्य राजनीतिक दलों व दूसरे घटकों से बातचीत में किस तरह की सहमति बनती है।


दोहा में अमेरिका के विदेश मंत्री माइकल पोम्पिओ और तालिबान के मुल्ला बरादर ने इस समझौते पत्र पर हस्ताक्षर किये। इस अवसर पर पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह मेहमूद कुरैशी भी उपस्थित थे जबकि भारत का प्रतिनिधित्व कतर में भारतीय राजदूत पी कुमारन ने किया।


समझौते के मुताबिक अगले 14 महीनों में अफगानिस्तान के विभिन्न इलाकों में तैनात 14 हजार अमेरिकी सैनिकों की वापसी होगी। पहले चरण में 5,000 सैनिक वापस होंगे। इस बीच तालिबान और अफगान सरकार के बीच बातचीत का सिलसिला शुरु होगा ताकि वहां सत्ता भागीदारी को लेकर एक सर्वमान्य सहमति बन सके। अमेरिका ने जहां सैनिकों को वापस बुलाने का वादा किया है वहीं तालिबान ने कहा है कि अब उसकी तरफ से अफगानिस्तान में ना तो कोई हिंसा की जाएगी और ना ही किसी तरह के आतंकवादी गतिविधियों में हिस्सा लिया जाएगा। समझौते के बाद पोम्पिओ ने अपने भाषण में उम्मीद जताई कि तालिबान वादे के मुताबिक अल-कायदा के साथ सारे संपर्क तोड़ लेगा। उन्होंने यह भी इशारों में कहा कि हालात बिगड़ने पर अमेरिका के पास सैन्य हमला करने का अधिकार आगे भी रहेगा।


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